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Date(s) - 12/05/2022
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कर्मनाशा घाटी का पुरातत्व एवं प्राचीन मार्ग
(नृजातीय एवं ऐतिहासिक अधययन के विशेष सन्दर्भ में)
कर्मनाशा नदी के उदगम के विषय में अनेक मान्यताये प्रचलित हैं। अतः अंधविश्वासी एवं रुढ़िवादी मान्यताओ को समाप्त कर सनातनी स्थापना प्रस्तुत करने का प्रयास किया जायेगा।
कर्मनाशा नदी कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर मैदानी भागो में बहती है। बिहार के कैमूर, रोहताश, एवं बक्सर तथा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, सोनभद्र तथा चंदौली जिले में एक घाटी का निर्माण करती है जो ऐतिहासिक एवं पुरातत्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस घाटी के कुछ स्थलों का उत्खनन हुआ है किन्तु बहुत से स्थल आज भी अनछुए है जिसके विषय में जानकारी प्राप्त करना, इस अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य होगा।
इस घाटी के विषय में सर्वप्रथम फ्रांसिस बुकानन तथा अलेक्जेंडर कन्निघम ने बर्णन किया है पुरात्तत्विक खोजो में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धिया पाई गई है, जिससे पता चलता है कि मानव का कर्मनाशा घाटी से जुड़ाव प्रारंभिक युग से आज तक निरंतर बना हुआ है। उन्नीसवीं सदी तक सम्पूर्ण खोज केवल पुरावशेषों तक सीमित रहे वीसवी सदी में कशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया फिर भी नृतत्व विज्ञानं एवं ऐतिहासिक दृष्टि से शोध कार्य का अभाव रहा।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अधिकतर शोधो में व्यापार-वाणिज्य के वर्णन में प्राचीन मार्गो का यदा -कदा उल्लेख हुआ है, जिसमे वास्तविक स्थलाकृति ,पर्यावरण तथा मौसम आदि के विषय अछूते रहे, इसे इस शोध कार्य में सम्मिलित करने का प्रयास किया जायेगा। प्राकृतिक स्रोतों एवं पाषाण कालीन अवशेषों के अन्तर्सम्बन्धों के आधार पर उपभोक्ता केंद्र तथा उत्पादन केंद्र निर्धारित कर सम्बंधित यात्रा -पथ को निर्धारित करने का प्रयास किया जायेगा।
हमारे शोध का प्रयास दृश्य स्थलों एवं क्षेत्र के अन्तर्सम्बन्धों का भी दर्शाने का होगा जिसे पर्यावरण नाम दिया जा सकता है। पुरातत्विक अध्ययनों ने केवल विचार तथा वस्तुओ के विनिमय पर ध्यान दिया जबकि साधन और तरीको पर ध्यान नहीं दिया, इस कारण प्राचीन पथ, उनकी प्रकृति एवं अवस्थान आदि स्पष्ट नहीं है, जिसे शोध कार्य में स्पष्ट करने का प्रयास किया जायेगा। आंकिक तकनीक एवं भौगोलिक सूचना तकनीक का प्रयोग किया जायेगा, जिससे पथो में हुए परिवर्तन, मौसमी एवं सांस्कृतिक वदलाव आदि का पता चल सकेगा। ऐतिहासिक मानचित्र, भौगोलिक एवं आंचलिक सूचनाओं को एकत्र कर सत्यता की जाँच करने का भी प्रयास किया जायेगा।
डॉ. नंदजी राय
अध्येता
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला