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Date/Time
Date(s) - 31/03/2022
3:00 pm - 5:00 pm

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Seminar Hall

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कथक नृत्य परम्परा: वर्तमान परिदृश्य में परिवर्तन और चुनौतियाँ

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। यहां आठ प्रकार की षास्त्रीय नृत्य षैलियां प्रचलित हैं। ‘कथक’ उत्तर भारत की एक मात्र प्रतिनिधि षास्त्रीय नृत्य षैली है। मान्यता है कि ‘कथा कहे सो कथक कहाये’ अर्थात कथावाचन से इस नृत्य षैली का प्रारम्भ हुआ। कथक नृत्य षैली की एक समृद्ध परम्परा रही है। जिसके विकास में दरबारों, महान कलाकारों, एवं कला चिंतकों का अभूतपूर्व योगदान रहा है। प्रारम्भ में इस नृत्यकला का मूल उद्देष्य ईष्वर की उपासना था। जीविकोपार्जन के लिए इस वर्ग के लोग पौराणिक कथाओं का वाचन कर भक्ति पूर्ण प्रसंगो क े माध्यम से लोगों को उपदेष देने का कार्य करते थे।इन नर्त कांे में नृत्य के साथ संगीत व साहित्य की अद्भुत प्रतिभा थी। इनकी बुद्धि विलक्षण थी। अपनी कला में इतने केन्द्रित थे कि सतत ्साधना कर इसके सौंदर्य, साहित्य तथा रचनाधर्मिता को विकसित करत े रहे। आचार्य भरत का नाट्यषास्त्र नृत्य के तकनीक व प्रदर्षन की आवष्यक प्रक्रियाओं के दृश्टिकोण से आज भी बहुत प्रासंगिक है। इस नृत्यषैली की परम्परा जो पूर्णतः मौखिक थी, इतनी समृद्ध रही कि नाट्यषास्त्र या उसके बाद क े संदर्भ ग्रंथों से सीधा तादात्म्य स्थापित होता है। एक समय था जब यह नृत्य षैली विषेश वर्ग तक सीमित थी किंतु वर्तमान परिदृष्य में समाज का वृहद वर्ग इससे जुड़ा है। इसे देखने, सीखने, अनुभव करने तथा अभिव्यक्ति की प्रक्रिया में अनेक बदलाव आये हैं।
परम्परागत षिक्षण के स्थान पर विभिन्न संस्थाओं, केन्द्रों, अकादमियों, विष्वविद्यालयों, वेब चैनलों व इंटरनेट आदि के माध्यम से इसका संचालन व्यापकता के साथ चुनौती अवष्य है।इस नृत्य षैली की परिपूर्णता के लिए षास्त्र और प्रयोग का समन्वय आवष्यक है। सिद्धांत और प्रायोगिक अनुप्रयोग का एकीकरण समय की मांग है। संस्थागत षिक्षण प्रणाली इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है किन्तु इस हेतु परिणाम मूलक आवष्यक व्यवस्था तथा गुणवत्ता परक पहल की आवष्यकता है। वर्तमान दौर कला और संस्कृति के प्रोत्साहन का है। इस ओर जन चेतना बढ़ी है। इसका क्षेत्र व्यापक हुआ है। 21वीं षताब्दी इस दृश्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय संस्कृति की समृद्ध परम्परा को आत्मसात करन े के लिए मूल्य परक व्यवस्था विकसित करनी होगी। जिसमें हमारी भारतीय कलाओं का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। नई षिक्षा नीति 2020 में भी भारतीय कलाओं की षिक्षा पर बल दिया गया है। इस षोध कार्य के दो पहलू हैं परिवर्तन और चुनौतियां। कथक नृत्य के स्वरूप और स्थिति में अनेक परिवर्तन आये हैं। भारत में प्रदर्षनकारी कलाओं के अध्ययन, अन्वेशण तथा चिंतन की प्राचीन दीर्घ परम्परा रही है। इसके बावजूद कथक नृत्य षैली के बदलते स्वरूप, समस्याये ं तथा संभावनाओं पर विष्लेशण तथा सार्थक विचार का अभाव रहा है। अतः यह षोध कार्य इस दिषा में महत्वपूर्ण प्रयास हो सकता है।

(प्रो. मांडवी सिंह)
अध्येता,
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला