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Date(s) - 21/04/2022
3:00 pm - 5:00 pm

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Seminar Hall

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भौगोलिक दृष्टिकोण से महाभारत का विसंकेतन
Decoding of Mahabharat from a Geographical Perspective
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भारतीय संस्कृति आरण्यक संस्कृति कहलाती है अर्थात् अरण्य से प्राप्त ज्ञान संपदा से सम्पन्न संस्कृति | सभ्यता के विकास क्रम में संस्कृति का योग वृक्ष, नदी, वन, सरोवर के साथ हुआ,वन की विजनता ने मानवीय बुद्धि को ऐसी शक्ति प्रदान की जिससे उस वनवास जन्य सभ्यता की धारा ने सारे भारत का ज्ञानाभिषेक किया ,आज भी यह प्रवाह रुका नहीं है | इस अरण्य से उसे जो ऊर्जा मिली उससे उसकी शक्ति अंतुर्मुखी हो गई, अतः विश्व की गंभीर सत्ता में उसका प्रवेश ध्यान के द्वारा हुआ। समुद्र ने जिस देश का पालन किया उसे वाणिज्य संपदा प्रदान की। मरुभूमि ने जिन लोगों को क्षुधित रखा वे दिग्विजयी हुए। इसी तरह प्रत्येक देश को वहाँ भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार मनुष्य की शक्ति को विभिन्न पथ मिले। भारत की आरण्यक साधन से उपजी भावना से प्रेरित होकर वह कह उठता है “तेन त्यकर्तेन भुनजिता:’ अर्थात त्याग द्वारा ही भोग करो
हमारे समस्त प्राचीन साहित्य में इस भावना की झलक देखने को मिलती है। कहा जा सकता है की भारत के इतिहास में भारत के भूगोल का महत्वपूर्ण योगदान है।
भारतीय परंपरा में रामायण तथा महाभारत इन दोनों ग्रंथों को इतिहास कहा गया है। इति+ह+आस अर्थात यह ऐसे हुआ, Indeed What Happen या जो होता आया है।
महाभारत इस देश की राष्ट्रीय ज्ञान संहिता है, इसमें भारत की आत्मा समाई हुई है। इस ग्रंथ की एक तिहाई विषय वस्तु भारत के प्राचीन भूगोल की व्याख्या करती है, प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य इस विषय वस्तु की व्याख्या वर्तमान पुरातात्विक सर्वेक्षणों से प्राप्त जानकारी एवं खगोलीय गणनाओं के आधार पर जानकारियों का भौतिक सत्यापन स्थापित करवर्तमान भूगोल से डीकोड कर महाभारत काल के भूगोल की जानकारी को सटीक तरह से प्रतिस्थापित करना है। महाभारत एवं पुराणों में भारत के पर्वत ,नदी और जनपदों की विस्तृत व्याख्या है। सप्तद्वीप परिकल्पना ,जम्बू द्वीप की विशालता था शेष ज्ञात विश्व से भारत के व्यापारिक संबंध ,प्राचीन यातायात के साधन के साथ भारत की आर्थिक संपन्नता की झलक भी इस साहित्य में प्राप्त होती है। महभारत में तीर्थयात्रा, दिग्विजय एवं जम्बू खंड विनिर्माण पर्व भौगोलिक सूचनाओं से सम्पन्न है। महाभारत और पुराणों मे मुख्य रूप से 1-सर्ग (सृष्टि)2-प्रतिसर्ग (प्रलय के बाद पुनः सृष्टि )3- वंश (देशों और ऋषियों की वंशावलिया) 4-मनवंतर (काल के महायुग )5-वंशानुचरित (चार युगों मे राज्य करने वाले राजवंशों का इतिहास ) की जानकारी विस्तार से प्राप्त होती है।
प्रस्तुत अध्ययन भारत के प्राचीन भूगोल का पुर्नलेखन महाभारत के माध्यम से कर उससे वर्तमान भारत की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक आत्मा को पहचानने का एक प्रयास है जो विलुप्त सरस्वती की अंतर्धारा की भांति आज भी लोक में प्रवाहित हो रही है।

अल्पना त्रिवेदी गिरी
अध्येता
भारतीय उच्च अध्ययन
संस्थान, शिमला