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Date/Time
Date(s) - 15/09/2022
3:00 pm - 5:00 pm

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Seminar Hall

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मीडिया

सर्वे भवतु सुखिनः एकं सद्विप्रा बहुधा बदंतिस्म’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम्” इसी भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ है। जिसमें सपूर्ण विश्व को अपने में समाहित करने की अपार शक्ति एवं सामर्थ्य है। यह “मैं नहीं, तू ही’ तथा ‘मै नहीं हम’ में विश्वास करने वाली संस्कृति है और आज इसी भारतीय संस्कृति का प्रमुख संवाहक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। बयानबाजी, व्यर्थ प्रचार और नाम सम्मान प्राप्ति की इच्छा से विलग संघ और उसके स्वयंसेवक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सांस्कृतिक संक्रमण के बीच अपनी राष्ट्रभक्ति की लौ जलाए हुए हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक निष्काम कर्म आंदोलन है जिसके संगठन का आधार सक्षम, स्थाई आत्मनिर्भर तथा कालजयी राष्ट्र है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई। अपनी स्थापना के 22 वर्षों अर्थात् 1948 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचार-प्रसार का कोई माध्यम नहीं था तथा समाचार पत्रों में उसकी नाम मात्र की चर्चा होती थी। यदि चर्चा होती भी थी तो वह नकारात्मक ही होती थी। सन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ तथा प्रचार-प्रसार माध्यमों द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि को धूमिल करने के साथ ही इस संगठन को नष्ट करने की स्थाई प्रयास प्रारंभ किए।
तब ऐसे समय में संघ ने मीडिया क्षेत्र में प्रवेश किया। फलत: देश के हर प्रांत और राज्य से दैनिक, साप्ताहिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हो गया। हिंदी में दैनिक स्वदेश’ ग्वालियर से साप्ताहिक पांचजन्य और आर्गनाइजर दिल्ली से राष्ट्रधर्म लखनऊ से तरुण भारत मराठी में नागपुर, मुंबई, सोलापुर और औरंगाबाद से मासिक विवेक हिंदी और मराठी में मुंबई से, अंग्रेजी में मदरलैंड’ दिल्ली से एवं केरल के एर्नाकुलम व कालीकट से मलयालम भाषा में ‘दैनिक जन्मभूमि, बंगलुरु से कन्नड में दैनिक होसदिगत, मलयालम भाषा में कोच्ची से केसरी, तमिल में चेन्नई से ‘विजय भारतम् कन्नड में बैंगलौर से ‘विक्रम’ गुजरात में ‘साधना’ कोलकाता से बांग्ला भाषा में स्वस्तिका, गुवाहाटी से असमिया में आलोक’ आदि पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
श्री गुरु जी ने कहा कि- सत्य की साधना ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ से ही होती है पत्रकारिता सामाजिक क्षेत्र की साधना है, यह आध्यात्मिक क्षेत्र का तप नहीं है। सामाजिक क्षेत्र का सत्य वही है, जिससे जन का कल्याण होता है और देश का कल्याण होता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से अब तक 96 वर्ष की यात्रा पूरी हो चुकी है किंतु आज भी सत्य ही है कि राजनीतिक प्रतिशोध, पूर्वाग्रह तथा वैचारिक मत भिन्नता के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन को मीडिया द्वारा वर्षों से लगातार उपेक्षित किया जाता रहा है। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचार परिवार द्वारा मीडिया क्षेत्र में किए गए विभिन्न क्रियाकलापों को प्रस्तुत करना ही मेरे शोध का प्रमुख उद्देश्य है।
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ- मीडिया को माना गया है। मीडिया रूपी सामाजिक संस्था का उद्भव और विकास व्यक्तियों और समूहों की सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन के रूप में हुआ है। जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने के कारण लोकतंत्र में मीडिया की अनिवार्यता कायम है। जनमानस को प्रभावित करने की इसमें असाधारण क्षमता रही है। मीडिया एक ऐसा सर्वसमावेशी क्षेत्र है जिसका संबंध समाज के हर क्षेत्र, हर घटना, और हर पहलू से है।
भारतीय भाषाओं का देश की पत्रकारिता में संवाद स्थापित करने के लिए शिवराम शंकर उपाख्य दादा साहब आपटे द्वारा हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी संवाद समिति की स्थापना की गई। जिस समय श्री आपटे इस समाचार एजेंसी की नींव रख रहे थे उस समय देश में एक भी भारतीय बहुभाषी समाचार समिति मौजूद नहीं थी। यही कारण रहा कि तात्कालीन समय में देश से निकलने वाले हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू एवं अन्य भारतीय भाषायी अखबार और पत्रिकाएँ तेजी से हिन्दुस्थान समाचार से जुड़ने लगीं। देश में सबसे पहले भारतीय भाषाओं का दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) बनाने का श्रेय भी इस एजेंसी को हैं।