Dr. Munish Kumar Mishra | |
Designation-Fellow | |
Email- munishmishrabhu@gmail.com | |
EPBAX- | |
Duration of Fellowship | July 2024 to July 2026 |
Research Project | Nyaya Shastra tradition of Kashi |
About:
Dr. Munish Kumar Mishra is a classical traditional scholar of Nyaya philosophy. He is doing research on the subject of “Nyaya Shastra tradition of Kashi” (काशी की न्याय शास्त्र परंपरा) at Indian Institute of Advanced Studies, Shimla. Dr. Munish Kumar Mishra is a permanent resident of Sonbhadra district, Uttar Pradesh. Dr. Munish Kumar Mishra has done Shastri/Acharya in Nyaya-Vaisheshika Philosophy from Banaras Hindu University. He has complied research degree in Nyaya-Vaisheshika Philosophy from Banaras Hindu University under the guidance of Professor Rajaram Shukla. In PhD you did research work on the title “आचार्यशंकरमिश्रकृतकणादरहस्यस्य समीक्षात्मकमध्ययनम्”. Under the Guru-Shishya tradition of Nyaya Shastra, he has formally studied Nyaya Shastra from Prof Rajaram Shukla, Professor Vashisht Tripathi, Professor G.Anjaneya Shastri and Professor Pradyot Kumar Mukhopadhyay. You have qualified NET examination from UGC-2012 and have received JRF Fellowship from ICPR Dew Delhi. He has also done Acharya in Sarva Darshan subject from Sampurnanand Sanskrit University. He has also done Diploma in Tabla and Yoga from Banaras Hindu University. As a research scholar, he taught for 4 years (2012-2016) at Banaras Hindu University. After completion of research degree, he taught for 1 year (2016-2017) in the Nyaya-Vaisheshika Department at Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi. After that, he taught Nyaya subject for 1 year (2017-2018) in the Vedic Philosophy Department of Banaras Hindu University. In the year 2018-19, under the aegis of Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan, in the role of a Sanskrit teacher, I imparted training in Sanskrit language to primary and secondary school teachers at various schools of Uttar Pradesh and DIET centers of Varanasi, Kaushambi and Sonbhadra districts. I taught Nyaya subject for 1 year (2022-2023) at Maharishi Panini Sanskrit and Vedic University, Ujjain. Dr. Munish Mishra has published 13 research papers in various journals. He has participated in about 50 seminars and workshops and presented his research papers there. Many of his articles have also been published in various newspapers. Dr. Munish Mishra has Four time Team Leader in Inter faculty youth Festival, BHU- 2010, 2011, 2013, 2014. Programme co-ordinator, Student’s Council, BHU-2010-11. Event Co-ordinator, Personality Enrichment and Stress Management Workshop, SVDV, BHU-10th October 2010. Contributions, Conference on Higher Education in Current Scenario’ on 25th-26th February 2011, Student’s Council, BHU. Second prize, Shastrarth competition, MalaviyaJaynti, BHU-2008. Third prize, Shastrarth competition, MalaviyaJaynti, BHU-2009. Frist prize, State Level shastriyaSpardha Organized by Rastriya Sanskrit Sansthanam- 2010. Participated, AkhilBhartiyashastriyaSpardha Organized by Rastriya Sanskrit Sansthanam- 2011. Best Poster Presentation Award in National Youth conference on Indian Knowledge System-2023 at IIT-Roodkee. Dr. Munish Mishra has conducted three research projects, out of which one project has been completed and two projects are currently ongoing.
Introduction to the project “काशी की न्याय दर्शन परम्परा’’- काशी नगरी प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति, आध्यात्म व ज्ञान-विज्ञान की राजधानी रही है। यद्यपि प्राचीनकाल में नालन्दा, तक्षशिला, उज्जयिनी आदि शिक्षा के बड़े प्रमुख केन्द्र थे तथापि आध्यात्म ज्ञान का केन्द्र काशी ही थी। वैदिक काल के दिवोदास व महर्षि व्यास से लेकर आदि शंकराचार्य, गौतम बुद्ध व पार्श्वनाथ से होते हुये तुलसीदास व कबीर तक सभी ने काशी को ही अपना केन्द्र बनाया अथवा यह कहें कि काशी में आने के बाद ही उनके ज्ञान की पूर्णता हुयी। काशी के बारे एक उक्ति भी प्रसिद्ध है- ‘वृन्दावन में भक्ति, अयोध्या में विरक्ति (वैराग्य) व काशी में ज्ञान प्राप्त होता है।’ यही कारण है कि प्राय: सभी संप्रदायों के प्रवर्तकों, आचार्यों ने अपने ज्ञान की पूर्णता हेतु काशी में कुछ समय अवश्य निवास किया। तदनन्तर यहीं से उन्होंने अपने सम्प्रदाय का, धर्म का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ किया। न्यायशास्र की परम्परा भारतीय ज्ञान परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। न्याय व वैशेषिक सामानतंत्रीय हैं जिन्हें सर्वशास्त्रोपकारक कहा गया है- “पाणिनीयं कणादं च सर्वशास्त्रोपकारकम्”| इसी प्रकार न्यायशास्त्र के लिए भी कहा गया है- प्रदीपः सर्वविद्यानां उपायः सर्वकर्मणाम्। आश्रयः सर्वधर्माणां शश्वदान्वीक्षिकी मता॥ न्यायभाष्य, पृष्ठ-15 मिथिला में न्याय दर्शन की बहुत समृद्ध परम्परा विद्यमान थी। भाष्यकार वात्स्यायन, वार्तिककार उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र, उदयनाचार्य, जयन्तभट्ट, नव्यन्याय के प्रवर्तक गङ्गेशोपाध्याय, पक्षधरमिश्र, वासुदेव सार्वभौम आदि नैयायिकों का जन्म मिथिला में हुआ था। प्राचीनकाल में न्याय दर्शन का अध्ययन करने के लिये सभी को मिथिला ही जाना पड़ता था किन्तु बाद में काशी से होती हुयी यह परम्परा धीरे-धीरे पूरे भारतवर्ष में व्याप्त हो गयी| गौतम और कणाद ऋषि के काशी आने का उल्लेख अनेकों स्थलों पर प्राप्त होता है| जिस न्यायविद्या, अन्वीक्षा या तर्कशास्र का वर्णन आदिकाव्य रामायण, पुराणों, स्मृतियों तथा शंकराचार्य, सांख्य, बौद्ध व जैन ने जिसके सिद्धान्तों का खण्डन किया हो, ऐसे समृद्ध न्यायशास्र की परम्परा बौद्ध व शंकराचार्य के आने से पूर्व ही काशी में विद्यमान रही होगी। इसके साथ ही ज्ञान के केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित जिस काशी में वेद,व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष, वेदान्तादि की समृद्ध परम्परा हो वहाँ तर्कशास्र न्यायविद्या की परम्परा न रही हो, यह कहना असंगत प्रतीत होता है। स्वतन्त्र रूप से ‘काशी की न्याय दर्शन परम्परा’’ पर अनुसन्धान न होने से इस विषय में अभी बहुत कुछ अनुसन्धेय है। जिसका इस अनुसन्धान के माध्यम से जानने का प्रयत्न किया जायेगा।
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